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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2633
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र

प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।

अथवा
रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है?
अथवा
रामानुज के दर्शन में ब्रहा के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
अथवा
रामानुज दर्शन में ब्रह्म का क्या स्वरूप है? विवेचना कीजिए।
अथवा
रामानुज के अनुसार ब्रह्म या ईश्वर के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।

उत्तर-

ब्रह्म अथवा ईश्वर

ब्रह्म पुरुषोत्तम है वह अनन्त गुणों से युक्त है जो अच्छे हैं तथा शुभ हैं व अशुभ गुणों से मुक्त है। वह सत्य, ज्ञान और आनन्द से युक्त है। वह देश-काल से परिच्छिन्न नहीं है वह सर्वगुण सम्पन्न हैं। ब्रह्म ईश्वर है, सगुण ब्रह्म व निर्गुण ब्रह्म में कोई भेद नहीं है। निर्गुण ब्रह्म केवल इसलिए कहा गया है कि वह प्रकृति से उत्पन्न अशुभ गुणों से शून्य है, पर नित्य सर्वव्यापक सूक्ष्म सबका अन्तर्यामी, अनन्त, अक्षय, सर्वेस, सर्वशक्तिमान और कल्याण गुणों से युक्त है। वह जंगत का कर्ता-धर्ता और हर्ता है। वह सबका उपादान कारण और निमित्त कारण है। वह अमृत का सेतु है। वह भूमा है और अपनी महिमा में निवास करता है। वह सबका अंन्तरात्मा व सब कार्यों का कारण है। वह आदि कारण है तथा नित्य, अज,  अमर, अनन्त, एकरस और सर्वव्यापी है। वह अनन्त इसलिए है क्योंकि सब जगह व्याप्त है, वह वीर्य से युक्त है और जगत का उपादान कारण होते हुए भी अपरिणामी है। ईश्वर विग्रह धारण करता है। उसका विग्रह उसके स्वरूप के समान शुद्ध है, उसका चेतन शरीर उसके ज्ञानमय स्वरूप को आवृत नहीं करता है। वह उसके दिव्यस्वरूप को प्रकट करता है। वह परम प्रकाशमय है तथा कल्याणरूपी गुणों से युक्त है।

ईश्वर का स्वरूप पंचविद्य है -

1. वासुदेव,
2. संकर्षण,
3. प्रद्युम्न,
4. अनिरुद्ध,
5. विभव,
6. अन्तर्यामी,
7. अर्चावतार।

वह काल का कर्त्ता है, मिश्रित सृष्टि का कर्त्ता है। मनुष्य, पशु, जड़, वस्तुएँ सभी में ईश्वर का समावेश है। ईश्वर, जड़ तथा चेतन सभी पदार्थों में विराजमान है। रामानुज के अनुसार, यथार्थ सत्ता निर्गुण नहीं होती इसलिए शंकर के निर्गुण ब्रह्म का स्वरूप रामानुज को मान्य नहीं होता है। ब्रह्म की संयुक्त इकाई है जिसके भीतर आत्मा और प्रकृति की भी सत्ता है। करुणा, ज्ञान, शक्ति सभी ईश्वर के गुण हैं। ईश्वर ने संसार का निर्माण किया है। रामानुज ने निरपेक्ष आत्मा का अस्तित्व भी माना। ईश्वर एक व्यक्ति के रूप में बिल्कुल पूर्ण माने जाते हैं। वे ही इस संसार के सृष्टिकर्ता हैं। रामानुज के अनुसार, सांसारिक जीवों का शरीर केवल विशेष तत्वों का सम्मिश्रण नहीं है। रामानुज के अनुसार, "शरीर एक ऐसा द्रव्य है जिसे चेतना सम्पन्न आत्मा पूर्णरूप से नियंत्रण में रख सकती हैं और अपने स्थायी साधन के लिए उसे धारणा भी कर सकती है। शरीर हमेशा ही आत्मा की अधीनता में है।"

रामानुज के अनुसार, जीवात्माएँ और प्रकृति दोनों ही ईश्वर की एकता के तत्वों में छिपे हैं। जीवात्मा का सम्बन्ध ईश्वर से उसी प्रकार है जिस प्रकार गुणों का सम्बन्ध द्रव्यं से है। रामानुज के अनुसार, अगर आत्माएँ और प्रकृति ईश्वर के गुण हैं तो उन गुणों को धारणा करने के लिए ईश्वर स्वयं द्रव्य रूप में रहता है।

ब्रह्म और ईश्वर में भेद

विशिष्टाद्वैत के अनुसार चित् और अचित् अंशों से विशिष्ट होकर भी ब्रह्म एक ही है। वेदान्ती तीन प्रकार के भेद मानते हैं -

1. विजातीय भेद -  जैसे मनुष्य और पशु में।

 

2. सजातीय भेद -  जैसे एक मनुष्य और दूसरे मनुष्य में

3. स्वगत भेद  - जैसे मनुष्य के हाथ और पैर में।

  शंकर के अनुसार ब्रह्म इन तीनों भेदों से रहित है। रामानुज भी ब्रह्म में सजातीय और विजातीय भेद नहीं मानते क्योंकि ब्रह्म का विजातीय अथवा सजातीय कोई पदार्थ नहीं है परन्तु रामानुज ब्रह्म में 'स्वगत भेद' मानते हैं क्योंकि उसमें चित् और अचित् दोनों एक-दूसरे से भिन्न हैं।

ब्रह्म और ईश्वर में भेद नहीं है

शंकर के अनुसार ब्रह्म ही एकमात्र पारमार्थिक सत्य है और ईश्वर व्यावहारिक सत्य है। अतः शंकर ब्रह्म और ईश्वर को भिन्न मानते हैं। रामानुज के अनुसार, ब्रह्म ही ईश्वर है। शंकर के अनुसार, ब्रह्म निर्गुण ही है, सगुण नहीं। रामानुज ब्रह्म को इस अर्थ में निर्गुण मानते हैं कि उसमें प्रकृतिजन्य अशुद्ध गुण नहीं है परन्तु वैसे रामानुज के अनुसार ब्रह्म सगुण है। वह परम पुरुष पुरुषोत्तम' है। उसमें सत्य, ज्ञान और आनन्द आदि सभी परम श्रेष्ठ गुण हैं। वह नित्य और अपरिवर्तनीय है। निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में कोई भेद नहीं है।

ब्रह्म और ईश्वर का स्वरूप

परब्रह्म नित्य, सर्वव्यापी, सूक्ष्म अन्तर्यामी, अनन्त, सर्वशक्तिमान् सर्वज्ञ और असंख्य गुणसम्पन्न है। वह जगत् का सृष्टा, पालक और संहारक है। वह समस्त जगत् का आधार है। वह उसका उत्पादक तथा निमित्त कारण है। वह स्वामी है। वह परम श्रेय है। वह समस्त फल देने वाला है। वह कर्माध्यक्ष है। वह भक्तों का आश्रय है। वह अनन्त ज्ञानस्वरूप है। उसका ज्ञान आनन्दमय है। उसके गुण नित्य, असीम, असंख्य निरुपाधि, अद्वितीय और विरुद्ध हैं। वह सबका अन्तरात्मा है। वह अमरत्व की ओर ले जाने वाला सेतु है। वह नित्य, अज, अमर और एकरस है। उसमें जगत् की सृष्टि पालन तथा संहार का ज्ञान और शक्ति बल, ऐश्वर्य, स्वातंन्त्रय कार्य और तेज है। अज्ञान को ज्ञान, निर्बल को दुःखी को दया, अपराधियों1 को क्षमा, कुटिलों को सीधापन बुरों को अच्छाई और साधकों को फल प्रदान करता है। उसका देह षागुण्यविग्रह अर्थात् ज्ञान, बल, ऐश्वर्य, वीर्य, शक्ति तथा तेज, आदि छः गुणों से परिपूर्ण है।

ईश्वर का पाँच प्रकार का स्वरूप

रामानुज के अनुसार ईश्वर का स्वरूप पाँच प्रकार का है -

 

1. पर- वह वासुदेव स्वरूप भी कहलाता है। यह काल की गति से परे है। इसका कभी परिणाम नहीं होता इसमें सदैव निरवधि आनन्द रहता है। यही भगवान का 'षाड्गुण्यविग्रह' कहलाता है। बैकुण्ठ में देवता लोग इसे नेत्रों से तथा ज्ञान से देखते हैं।

2. व्यूह -यह विश्वलीला के निमित्त है। यह 'संकर्षण', 'प्रद्युम्न' तथा 'अनिरुद्ध' में वर्तमान है। यह संसारियों की रक्षा और मुमुक्ष तथा भक्तों के प्रति अनुग्रह दिखाने के लिये है। व्यूह में प्रकट रूप में केवल दो गुण रहते हैं। ज्ञान तथा बाल संकर्षण के स्वरूप में प्रकट होते हैं। प्रद्युम्न में ऐश्वर्य तथा वीर्य और अनिरुद्ध में शक्ति और तेज गुण रहते हैं। संकर्षण से शास्त्र प्रवर्तन और जगत् का संहार, प्रद्युम्न से धर्मोपदेश और मनु, चारों वर्ण आदि शुद्ध वर्गों की सृष्टि तथा अनिरुद्ध से रक्षा, तत्वज्ञान का प्रदान, काल सृष्टि तथा मिश्र सृष्टि का निर्वाह होता है।

3. विभव - यह अनन्त होने पर भी दो प्रकार का है मुख्य और गौण। मुख्य विभव श्रीभगवान् का अंश तथा अप्राकृत देह युक्त है। मुमुक्ष इसी की उपासना करते हैं। यह साक्षात् भगवान का अवतार है। गौणविभव 'स्वरूपावेश' और 'शक्त्यावेश' अवतार को कहते हैं। अवतार साधुओं के परित्राण, दृष्कृंतों के विनाश और धर्म के संस्थापन के लिए होता है। -

4. अन्तर्यामी -  इस स्वरूप से भगवान् जीवों के अन्तःकरण में प्रवेश करके उनकी सकल प्रवृत्तियों का नियमन करते हैं। इसी रूप से भगवान् सभी जीवों की सभी अवस्थाओं में स्वर्ग, नरक आदि स्थानों पर सहायता करते हैं।

5. अर्चावतार -  यह भक्त की रुचि के अनुसार मूर्ति में रहने वाली भगवान् की उपास्य मूर्ति है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  2. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  3. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  4. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  5. प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  8. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  9. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
  11. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  12. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  13. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  14. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  15. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  16. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  18. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  19. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  20. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  21. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
  22. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
  23. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
  24. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
  25. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
  28. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
  29. प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  30. प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
  32. प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
  33. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  34. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  35. प्रश्न- ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाणों की व्याख्या कीजिए।
  36. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के प्रत्यक्ष प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के आत्मा सम्बन्धी विचार दीजिए।
  38. प्रश्न- सुख प्राप्ति ही जीवन का अन्तिम उद्देश्य है। बताइये।
  39. प्रश्न- चार्वाक के ज्ञान सिद्धांत की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
  40. प्रश्न- "चार्वाक की तत्वमीमांसा उसकी ज्ञान मीमांसा पर आधारित है।" विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- जैन महावीर के जीवन वृत्त तथा शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में जैन धर्म के योगदान का वर्णन कीजिए।
  43. प्रश्न- जैन दर्शन में स्याद्वाद किसे कहते हैं?
  44. प्रश्न- जैन दर्शन के सात वाक्य भंगीनय लिखिए।
  45. प्रश्न- सात वाक्यों का आलोचनात्मक दृष्टिकोण से वर्णन कीजिए।
  46. प्रश्न- जैनों के बन्धन तथा मोक्ष सम्बन्धी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  47. प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य का परिचय दीजिये।
  48. प्रश्न- द्रव्य के प्रकार बताइये।
  49. प्रश्न- द्रव्य को आकृति द्वारा स्पष्ट कीजिए।
  50. प्रश्न- जीव अथवा आत्मा किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- अजीव द्रव्य क्या है? व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- जैन दर्शन में जीव का स्वरूप क्या है?
  53. प्रश्न- जैन दर्शन के द्रव्य सिद्धान्त की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
  54. प्रश्न- जैन धर्म पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- जैन धर्म के पतन के कारण स्पष्ट कीजिए।
  56. प्रश्न- जैन धर्म व बौद्ध धर्म में समानताओं और असमानताओं का तुलनात्मक परीक्षण कीजिए।
  57. प्रश्न- जैन धर्म की शिक्षाएँ क्या थीं?
  58. प्रश्न- पुद्गल किसे कहते हैं?
  59. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र और धर्म पर टिप्पणी लिखिए।
  60. प्रश्न- जैन धर्म के पाँच महाव्रत बताइए।
  61. प्रश्न- जैन धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय बताइए।
  62. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  63. प्रश्न- सांख्य की 'प्रकृति' तथा वेदान्त की 'माया' के बीच सम्बन्ध की व्याख्या कीजिये।
  64. प्रश्न- गौतम बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- बौद्ध धर्म के उत्थान व पतन के क्या कारण थे? समझाइये।
  66. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान बताइये।
  67. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या आशय है?
  68. प्रश्न- बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्यों की विवेचना कीजिए।
  69. प्रश्न- बुद्ध ने कौन से दुःख के कारणों के चक्र बताए? बौद्ध दर्शन के तृतीय आर्य सत्य की विवेचना कीजिये।
  70. प्रश्न- बौद्ध धर्म पर लेख प्रस्तुत कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के चार सम्प्रदाय लिखिए।
  72. प्रश्न- क्षणिकवाद का सिद्धान्त क्या है?
  73. प्रश्न- बौद्ध धर्म के महत्त्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अनुसार निर्वाण प्राप्ति के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
  75. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निर्वाण की व्याख्या कीजिये।
  76. प्रश्न- बौद्ध संगीतियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- महाजनपदों के नाम लिखिए।
  78. प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं?
  79. प्रश्न- भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की क्या देन थी?
  80. प्रश्न- क्या बौद्ध दर्शन निराशावादी है?
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति की विशेषताएँ लिखिए।
  82. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति के गुणों की व्याख्या कीजिए।
  83. प्रश्न- सत्, रज और तम गुण किसे कहते हैं?
  84. प्रश्न- प्रकृति के गुणों के क्या परिणाम होते हैं?
  85. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार सत्कार्यवाद की व्याख्या कीजिए।
  86. प्रश्न- सांख्य दर्शन के तत्व सम्बन्धी विचार लिखिए।
  87. प्रश्न- प्रकृति तथा पुरुष का अर्थ तथा सम्बन्ध बताइए।
  88. प्रश्न- ज्ञानेन्द्रियों की व्याख्या कीजिए।
  89. प्रश्न- पुरुष के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। पुरुष के अस्तित्व के लिए सांख्य द्वारा दिये गये तर्कों की विवेचना कीजिए।
  90. प्रश्न- सांख्य दर्शन की समीक्षा कीजिए।
  91. प्रश्न- सांख्य ज्ञानमीमांसा की विवेचना कीजिए।
  92. प्रश्न- सांख्य दर्शन के पुरुष की अनेकता की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- योग दर्शन से क्या तात्पर्य है? समझाइये।
  94. प्रश्न- पंतजलि ने योग सूत्रों को कितने भागों में बाँटा?
  95. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  96. प्रश्न- योग दर्शन के अभ्यास के अंग कौन-कौन से हैं?
  97. प्रश्न- योग दर्शन में तीन मार्ग कौन से हैं?
  98. प्रश्न- योग के अष्टांग साधन बताइए।
  99. प्रश्न- योगांग किसे कहते हैं?
  100. प्रश्न- योग दर्शन के पाँच नियमों की व्याख्या कीजिए।
  101. प्रश्न- योग' से आप क्या समझते हैं? योग साधना के विभिन्न सोपानों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए।
  103. प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए तथा उसके अस्तित्व को सिद्ध करने सम्बन्धी प्रमाणों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  104. प्रश्न- वैराग्य क्या है? इसकी भेदों सहित व्याख्या कीजिए।
  105. प्रश्न- न्याय दर्शन से ईश्वर किन रूपों में कार्य करता है।
  106. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
  107. प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये? तथा न्यायशास्त्र का प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रमाण शास्त्र की व्याख्या कीजिए।
  109. प्रश्न- भारतीय तर्कशास्त्र में हेत्वाभास के प्रकार बताइए।
  110. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान' के स्वरूप और प्रकारो की व्याख्या कीजिये।
  111. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार सोलह पदार्थों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- प्रमा को परिभाषित करते हुए प्रमा के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- प्रमा की परिभाषा दीजिए तथा उसके सामान्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- प्रमाण की परिभाषा देते हुए प्रमाण के प्रमुख प्रकारों का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- न्याय के आलोक में पदार्थ के विभिन्न प्रकारों का विवेचन कीजिए।
  116. प्रश्न- शब्द-प्रमाण में शब्द को स्वतन्त्र प्रमाण माना गया है विवेचन कीजिए।
  117. प्रश्न- उपमान प्रमाण के स्वरूप का विवेचन करते हुए इसकी परिभाषा दीजिए।
  118. प्रश्न- 'न्याय दर्शन' में 'अनुमान प्रमाण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए एवं अनुमान प्रमाण के प्रकारान्तर भेदों का उल्लेख कीजिए।
  119. प्रश्न- अनुमान क्या है? परमार्थानुमान व स्मार्थानुमान को स्पष्ट कीजिए।
  120. प्रश्न- प्रत्यक्ष प्रमाण का स्वरूप क्या है?
  121. प्रश्न- न्यायदर्शन में निर्विकल्प प्रत्यक्ष का स्वरूप समझाइये।
  122. प्रश्न- न्यायदर्शन में उपमान प्रमाण का क्या स्वरूप है? न्याय दर्शन में उपमान प्रमाण का स्वरूप
  123. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में अनुमान प्रमाण का खंडन किस प्रकार करता है?
  124. प्रश्न- अनुमान प्रमाण में व्याप्ति की भूमिका समझाइये।
  125. प्रश्न- प्रमा और अप्रमा के भेद को स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- न्याय दर्शन में कितने प्रमाण स्वीकार किए गए हैं? सभी का वर्णन कीजिए।
  127. प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
  128. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों के नाम लिखिये।
  129. प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  130. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
  131. प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
  132. प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
  133. प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
  134. प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
  135. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
  136. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन क्या है? न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन में आपस में क्या सम्बन्ध है? वैशेषिक दर्शन में सात प्रकार के पदार्थ बताइए।
  137. प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
  138. प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
  139. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन की समीक्षा कीजिए।
  140. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन के स्वरूप पर प्रकाश डालिए?
  141. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
  142. प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
  143. प्रश्न- संयोग और समवाय पर टिप्पणी लिखिए।
  144. प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
  145. प्रश्न- पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं?
  146. प्रश्न- द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  147. प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
  148. प्रश्न- उपमान किसे कहते हैं?
  149. प्रश्न- अर्थापत्ति किसे कहते हैं?
  150. प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
  151. प्रश्न- मीमांसा के तत्व विचार की व्याख्या कीजिए।
  152. प्रश्न- मीमांसकों ने 'आत्मा' का क्या स्वरूप बतलाया है?
  153. प्रश्न- शंकराचार्य ने ब्रह्म के कितने स्वरूपों की व्याख्या की है?
  154. प्रश्न- ब्रह्म और माया क्या है?
  155. प्रश्न- ब्रह्म और जीव क्या हैं?
  156. प्रश्न- माया में कितनी शक्तियों का समावेश है?
  157. प्रश्न- "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" शंकर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? शंकर के ब्रह्म और जगत सम्बन्धी विचारों के सन्दर्भ में विवेचना कीजिए।
  158. प्रश्न- अद्वैत दर्शन में जीव के बंधन और मोक्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
  159. प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  160. प्रश्न- शंकर का अद्वैत वेदान्त क्या है?
  161. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त में निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में क्या भेद बताया गया है? विवेचना कीजिए।
  162. प्रश्न- शंकर के 'ईश्वर' विचार की व्याख्या कीजिये।
  163. प्रश्न- जीव किसे कहते हैं?
  164. प्रश्न- शंकर के अद्वैतवाद तथा रामानुज के विशिष्ट द्वैतवाद में अन्तर बताइए।
  165. प्रश्न- वेदान्त दर्शन किसे कहते हैं? शंकर के वेदान्त दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  166. प्रश्न- क्या विश्व शंकर के अनुसार वास्तविक है? विवेचना कीजिए।
  167. प्रश्न- रामानुज शंकर के मायावाद का किस प्रकार खण्डन करते हैं?
  168. प्रश्न- शंकर की ज्ञान मीमांसा का वर्णन कीजिए।
  169. प्रश्न- शंकर के ईश्वर विचार की व्याख्या कीजिए।
  170. प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
  171. प्रश्न- रामानुज के विशिष्टाद्वैत वेदान्त से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  172. प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।
  173. प्रश्न- रामानुज के अनुसार मोक्ष व उनके साधनों का वर्णन कीजिए।
  174. प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
  175. प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
  176. प्रश्न- रामानुज के 'जीव सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिये।
  177. प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
  178. प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  179. प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
  180. प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
  181. प्रश्न- चित्त क्या है?

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